किसी कार्य को बिना विशेष विचार किये सहसा नहीं करना चाहिए

0
2581
Google search engine
Google search engine

 सारी दुनिया महाकवि भारवि के पांडित्य की प्रशंसा करती थी, किंतु भारवि के पिता सदैव उसकी निंदा किया करते थे। इस कारण भारवि अपने पिता से रुष्ट रहा करते थे। एक बार उन्होंने अपने पिता के वध करने का निश्चय कर लिया, हथियार छिपाकर वे उचित अवसर की प्रतीक्षा में थे कि देखा पिताजी, माताजी चाँदनी रात में बैठे वार्तालाप कर रहे हैं। पिताजी कह रहे हैं- मेरा भारवि विद्वानों में ऐसा ही निष्कलंक है जैसा कि यह चंद्रमा। इस बात को सुनकर माताजी ने आश्चर्य से पूछा- पर आप भारवि के सामने तो उसकी निंदा ही करते हैं- ऐसा क्यों? पिता ने कहा- अरे! भारवि के सामने भारवि की निंदा मैं केवल इसलिए करता हूं कहीं उसे अहंकार न हो जाए। अहंकार से प्रगति अवरुद्ध हो जाती है। मैं अपने भारवि को बहुत ऊंचे स्थान पर प्रतिष्ठित देखना चाहता हूं। छुपकर बैठे हुए भारवि ने जैसे ही पिता जी के वचन सुने कि वह प्रायश्चित की अग्नि में जलने लगा, उसने सोचा कहाँ मैं पिताजी का वध करने जा रहा था, और कहाँ पिताजी के मेरे प्रति ये उदात्त भाव। बंधुओ। इसी प्रकार क्षणिक आवेश में, चञ्चलचित्त से लिए निर्णय महान् कष्टदायक हो जाते हैं इसलिए पर्याप्त विचार करके धैर्यपूर्वक ही प्रत्येक निर्णय लिया जाना चाहिए


महाकवि भारवी का ही प्रसिद्ध वाक्य है–
सहसा विदधीत न क्रियामविवेक: परमापदां पदम्।।


अर्थात किसी कार्य को बिना विशेष विचार किये सहसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि धैर्य को छोड़कर सहसा कोई कार्य करने से वह अविवेकयुक्त कार्य अनेक विपत्तियों-आपत्तियों का कारण बन जाता है।
धैर्य का अर्थ आलस्य नहीं होता, निष्कर्मण्यता भी नहीं होता। स्थिर बुद्धि से यथावसर किया जाने वाला कार्य ही धैर्य अथवा धृति का परिचायक है। इस प्रकार धैर्यपूर्वक निर्मल बुद्धि से लिया गया प्रत्येक निर्णय एवं तदनुसार कार्य धर्म ही होगा।