घर में कुत्ता पालना चाहिये या नहीं ? क्या कहता है महाभारत

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घर में कुत्ता नहीं रखना चाहिये। कुत्तेका पालन करनेवाला नरकों में जाता है। महाभारत में आया है कि जब पाँचों पाण्डव और द्रौपदी संन्यास लेकर उत्तर की ओर चले तो चलते-चलते भीमसेन आदि सभी गिर गये।
अन्त में जब युधिष्ठिर भी लड़खड़ा गये, तब इन्द्रकी आज्ञा से मातिल रथ लेकर वहाँ आया और युधिष्ठिर से कहा कि आप इसी शरीर से स्वर्ग पधारिए। युधिष्ठिर ने देखा कि एक कुत्ता उनके पास खड़ा है।
उन्होंने कहा कि यह कुत्ता मेरी शरण में आया है, अतः यह भी मेरे साथ स्वर्ग में चलेगा।

इन्द्रने युधिष्ठिरसे कहा‒

स्वर्गे लोके श्ववतां नास्ति धिष्ण्यमिष्टापूर्तं क्रोधवशा हरन्ति ।
ततो विचार्य क्रियतां धर्मराज त्यज श्वानं नात्र नृशंसमस्ति ॥
(महाभारत, महाप्र॰ ३ । १०)

“धर्मराज ! कुत्ता रखने वालोंके लिये स्वर्गलोक में स्थान नहीं है। उनके यज्ञ करने और कुआँ, बावड़ी आदि बनवानेका जो पुण्य होता है, उसे क्रोधवश नामक राक्षस हर लेते हैं। इसलिये सोच-विचारकर काम करो और इस कुत्तेको छोड़ दो। ऐसा करने में कोई निर्दयता नहीं है ।”

तात्पर्य है कि गृहस्थ को घर में कुत्ता नहीं रखना चाहिये। महाभारत में आया है‒

भिन्नभाण्डं च खट्‌वां च कुक्कुटं शुनकं तथा ।
अप्रशस्तानि सर्वाणि यश्च वृक्षो गृहेरुहः ॥
भिन्नभाण्डे कलिं प्राहुः खट्वायां तु धनक्षयः ।
कुक्कुटे शुनके चैव हविर्नाश्नन्ति देवताः ।
वृक्षमूले ध्रुवं सत्त्वं तस्माद् वृक्ष न रोपयेत् ॥
(महाभारत, अनु॰ १२७ । १५-१६)

“घरमें फूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्ष का होना अच्छा नहीं माना गया है। फूटे बर्तन में कलियुग का वास कहा गया है। टूटी खाट रहने से धन की हानि होती है। मुर्गे और कुत्ते के रहने पर देवता उस घर में हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकान के अन्दर कोई बड़ा वृक्ष(पीपल आदि) होने पर उसकी जड़ के भीतर साँप, बिच्छू आदि जन्तुओं का रहना अनिवार्य हो जाता है, इसलिये घरके भीतर पेड़ न लगाये ।”

कुत्ता महान अशुद्ध, अपवित्र होता है। उसके खान-पान से, स्पर्श से, उसके जगह-जगह बैठने से गृहस्थ के खान-पान में, रहन-सहन में अशुद्धि, अपवित्रता आती है और अपवित्रता का फल भी अपवित्र (नरक आदि) ही होता है।