आज पश्चिमी प्रभाव में आकर लोग अपनी पुरातन संस्कृति और सभ्यता को भूल रहे हैं। हम भले ही कितना भी विकास कर लें परन्तु हमारी जडें भारत में ही हैं इसका हम सबको स्मरण रखना होगा। हमें अपनी भावी पीढ़ी को भी भारतीयता की शिक्षा देना आवश्यक है ताकि वे अपनी सस्कृति पर गौरव कर सके ।
उक्त उद्गार मुम्बई के प्रसिद्ध आर्थोपेडिक सर्जन डाक्टर राकेश दुबे जी ने काशी के केदार क्षेत्र में स्थित शंकराचार्य घाट पर आयोजित भारतीय गणतन्त्र तिथि उत्सव के अवसर पर व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि आज बडे ही सौभाग्य की बात है कि काशी में गंगा किनारे भारतीय तिथि के अनुसार गणतन्त्र तिथि मनाने का सुअवसर मिला। स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः महाराज ने जो यह शुरुआत की है वह भारतीयों के गौरव को स्मरण कराने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। मैं मुम्बई में भी अपने से जुड़े संस्थाओं में इसी तिथि पर गणतन्त्र तिथि उत्सव मनाने की शुरुआत करूँगा।
श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी ने कहा कि हमें गर्व है कि हमें शंकराचार्य परम्परा के एक ऐसे सन्त का सान्निध्य मिला है जो हम सबमें भारतीयता की भावना को भर रहे हैं और हमें अपने प्राचीन गौरव का निरन्तर स्मरण करा रहे हैं।
साध्वी पूर्णाम्बा जी ने कहा कि जब देश में ईसाई और मुसलमान अपने कैलेण्डर के अनुसार अपने पर्व मना सकते हैं तो हम भारतीय क्यों न अपने पंचांग का उपयोग करें? क्या मजबूरी है कि हमने ग्रेगेरियन कैलेण्डर को ही महत्व देना आरम्भ किया। इस पर गहन विचार होना चाहिए और भारतीय गौरव की पुनर्प्राप्ति के लिए सभी को भारतीय तिथि के अनुसार ही पर्व मनाना चाहिए।
कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक मंगलाचरण से हुआ। आचार्य पं भूपेन्द्र मिश्र जी ने पूज्य शंकराचार्य जी के चित्र का एवं ध्वजा का पूजन कराया । वैदिक पं आशीष ने वैदिक राष्ट्र मन्त्र का वाचन किया ।
प्रमुख रूप से गायनोकोलोजिस्ट डा, श्वेता दुबे जी, सामना के रिपोर्टर श्री अनिल कुमार पाण्डेय जी, साध्वी शारदाम्बा जी, साध्वी पूर्णाम्बा जी, श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी, पं ओमप्रकाश पाण्डेय जी, डा विजय शर्मा जी, प्रबन्धक शैलेष तिवारी जी, दिनेश वर्मा, मनोज साहनी आदि जन उपस्थित रहे ।