देवशयनी एकादशी , जानें पूजा मुहूर्त और विधि – चातुर्मास होंगे प्रारंभ, भूलकर भी न करें ये काम!

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हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसे आषाढ़ी, पद्मनाभा और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह एकादशी प्रतिवर्ष जून या जुलाई के महीने में आती है, इस साल 2018 में देवशयनी एकादशी 23 जुलाई, सोमवार को मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन से भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं और लगभग चार माह की अवधि के बाद, जब सूर्य, तुला राशि में प्रवेश करता है, तो उन्हें उठाया जाता है। इस दिन को देवउठनी एकादशी कहते हैं। भगवान श्री विष्णु के 4 माह तक चलने वाले इस निंद्रा काल को हिन्दू धर्म में चातुर्मास कहा जाता है। पद्मपुराण में कहा गया है कि, जो मनुष्य मोक्ष की कामना रखता है उसे देवशयनी और देवउठनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

*देवशयनी एकादशी व्रत मुहूर्त*

पारणा मुहूर्त05:37:42 से 08:21:37 तक, 24 जुलाई को
अवधि2 घंटे 43 मिनट

भगवान विष्णू शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर निंद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु के शयन के इन 4 महीनों को हिन्दू धर्म में चातुर्मास कहा गया है। मान्यता है कि इस अवधि में जब भगवान सो जाते हैं तो अनेक शुभ कार्य जैसे- विवाह, गृह प्रवेश और मुंडन संस्कार आदि नहीं करना चाहिए। क्योंकि इन कार्यों में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है। वहीं इन महीनों में बारिश और बादलों के कारण सूर्य-चंद्रमा का तेज कम हो जाता है।

*देवशयनी एकादशी व्रत का महत्व*

ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी का विशेष महत्व मिलता है। कहते हैं कि इस व्रत को करने से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और सभी पाप नष्ट होते है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व और विधान है।

*आषाढ़ी एकादशी पूजा विधि*

एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु का शयन प्रारंभ होने से पहले विधि-विधान से पूजन करने का बड़ा महत्व है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

(1) वे श्रद्धालु जो देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए।
(2) पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।
(3) भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।
(4) भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करें…

‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।

अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।
(5) इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
(6) देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।

*चातुर्मास में क्या करें, क्या न करें*

हिन्दू धर्म में चातुर्मास की अवधि में शुभ कार्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य काम भी वर्जित माने गये हैं।

(1) अच्छी वाणी और मधुर स्वर के लिए गुड़ नहीं खायें।
(2) लंबी आयु व पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का त्याग करें।
(3) वंश की वृद्धि के लिए नियमित रूप से दूध का सेवन करें।
(4) पलंग पर शयन ना करें, नीचे जमीन पर सोयें।
(5) शहद, मूली, परवल और बैंगन नहीं खायें।