राजा को गद्दी पर बिठाने और हटाने दोनों का अधिकार केवल सन्तों को ही

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वाराणसी:-

आजकल लोग यह कहते सुने जाते हैं कि सन्तों का राजनीति में क्या काम ? परन्तु हमारे पुराणों में ही यह उल्लेख मिलता है कि जब राजाओं ने अपनी सत्ता खोई है तो सन्तों के आशीर्वाद से ही उन्हें वह राजसत्ता पुनः वापस प्राप्त हुई है और जब जब राजाओं को सत्ता का अहंकार हुआ है तब तब सन्तों ने राजाओं को गद्दी से भी उतारने में देरी नहीं की ।

ये बाते स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज ने आज रवीन्द्रपुरी में डा हरिप्रकाश पाण्डेय जी के आवास पर आयोजित धर्मसभा में व्यक्त की ।

उन्होंने कहा कि मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत दुर्गा सप्तशती की कथा में यह वर्णन आता है कि राजा सुरथ ने जब अपना राज्य खोया था तो सुमेधा ऋषि द्वारा बताए गये अनुष्ठान से उसने पुनः राजसत्ता प्राप्त की थी । इसी प्रकार जब राजा घनानन्द सत्ता के अहंकार में चूर हो गया तब चाणक्य ऋषि ने चन्द्रगुप्त के माध्यम से उसको गद्दी से उतारा था । ऐसे ही अनेक उदाहरण पुराणों में देखने को मिलते हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि राजसत्ता से सन्तों का सदा का साथ रहा है ।

स्वामिश्रीः ने आगे कहा कि वर्तमान समय में रामराज्य की स्थापना के लिए शक्ति संग्रह की आवश्यकता है और शक्ति की उपासना से ही हमें रामराज्य की स्थापना का क्रम आगे बढ़ाना है ।

प्रमुख रूप से महन्थ महाराजमणि शरण सनातन जी, स्वामी धर्मदत्त जी, स्वामी त्रिभुवनदास जी, स्वामी अभयानन्द जी, ब्रह्मचारी केशवानन्द जी, ब्रह्मचारी श्रीभगवान जी, ब्रह्मचारी वैराग्य स्वरूप जी, जय जय शास्त्री जी, अधिवक्ता रमेश उपाध्याय जी, हजारी जी, अनुराग जी, रवि त्रिवेदी जी, श्रीलाल शर्मा जी, किशन जायसवाल जी, दीपक केसरी जी, साध्वी शारदाम्बा जी, साध्वी पूर्णाम्बा जी, डा लता पाण्डेय जी, श्रीमती सावित्री पाण्डेय जी, श्रीमती विजया तिवारी जी, श्रीमती उर्मिला शुक्ल जी, राजेश तिवारी जी आदि जन उपस्थित रहे ।

कार्यक्रम का शुभारम्भ योगेशनाथ त्रिपाठी जी के वैदिक मंगलाचरण से हुआ । संचालन कृष्ण पाराशर जी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन श्री हरिमोहन जी ने किया ।