वाराणसी – १७.२.२०१८ को यहां के मोहनसराय स्थित स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड साइंसेस में नए एवं स्थायी परिवर्तन के लिए आवश्यक नेतृत्व का रसायन विषय पर छठवीं अंतरराष्ट्रीय परिषद संपन्न हुई । इस परिषद में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से आध्यात्मिक नेतृत्व विषय पर शोधनिबंध प्रस्तुत करते समय सद्गुरु (डॉ.) चारूदत्त पिंगळेजी ने प्रतिपादित किया कि यथा राजा तथा प्रजा, अर्थात जैसा राजा होता है, वैसी ही प्रजा होती है ! इस उक्ति के अनुसार बुरे नेता के कारण समाज की स्थिति बुरी हो जाती है तथा अच्छे नेता के कारण समाज का कल्याण होता है एवं वहां शांति स्थापित होती है । इस अवसर पर सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने शोधनिबंध का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि खरा नेतृत्व केवल उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने से ही साध्य हो सकता है । साधना करने से व्यक्ति आदर्श नागरिक बनता है । इनमें से कुछ आदर्श नागरिक आध्यात्मिक उन्नति कर आदर्श नेता बन सकते हैं और ऐसे आदर्श नेता ही समाज में नया और स्थायी सकारात्मक परिवर्तन कर सकते हैं ।
आध्यात्मिक नेतृत्व विषय पर शोधनिबंध का आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण की सहायता से अध्ययन किया गया । यू.टी.एस. (युनिवर्सल थर्मो स्कैनर) नामक वैज्ञानिक उपकरण व्यक्ति में विद्यमान नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा और उसके प्रभामंडल की गणना करता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से इस उपकरण की सहायता से ४ प्रसिद्ध नेताआें से प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदनों का अध्ययन किया गया । इन नेताआें में एक तानाशाह, एक प्रसिद्ध मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ), एक राजकीय प्रमुख और एक उच्च आध्यात्मिक स्तर के संत का चयन किया गया । इस यू.टी.एस. उपकरण द्वारा किए गए परीक्षण में निरीक्षणों का विश्लेषण करने पर ध्यान में आया कि, तानाशाह और मुख्यकार्यपालन अधिकारी में से अधिक नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे थे । तानाशाह व्यक्ति से नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना स्वाभाविक है; परंतु एक प्रख्यात कार्यपालन अधिकारी से नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होता आश्चर्यजनक था । अधिक सकारात्मकता प्रक्षेपित करनेवाले संत को छोडकर अन्य किसी नेता में सकारात्मक ऊर्जा दिखाई नहीं दी । प्रभामंडल के निरीक्षण में भी संत का प्रभामंडल सर्वाधिक दिखाई दिया । सूक्ष्म स्पंदनों का अध्ययन करनेवालों को भी इन चारों नेताआें में तानाशाह और मुख्य कार्यपालन अधिकारी में नकारात्मकता तथा संत के चित्र में बडी मात्रा में सकारात्मकता प्रतीत हुई ।
यह शोधनिबंध महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने लिखा है तथा सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी सहलेखक हैं । यह परिषद दीपप्रज्वलन और श्री सरस्वतीदेवी का पूजन कर प्रारंभ की गई । इस परिषद में भारत सहित विविध देशों के विशेषज्ञों ने अनेक शोधनिबंध प्रस्तुत किए ।